नमस्कार आज बात इस बारे में जोकि क्रिकेट वर्ल्ड कप 2019 से जुड़ी है यानी हमारे इंडियन टीम के बारे में इंडियन टीम में कैसा दल समय बन चुका है जिसमें बदलाव की कमी नहीं देखी जा सकती लगातार कई बदलाव के साथ इंडियन टीम बहुत ज्यादा चर्चा में रही है। यह बदलाव है एक ऐसी बात बताता है की इंडियन टीम किस परेशानी से जूझ रही है या कह सकते हैं कि सिलेक्टर्स के पास कितने ज्यादा ऑप्शंस हैं एक और बात सवाल उठ सकती है कि भारतीय सिलेक्टर्स किस मनोव्यथा से गुजर रहे हैं।
यह कहानी शुरू होती है विश्व कप 2019 के टीम के चयन से टीम के चयन पर सवाल तब उठे जब उन्होंने तो नाम देखें मयंक अग्रवाल और विजय शंकर यह तो ऐसे बल्लेबाज थे या खिलाड़ी थे  जिनकी नियुक्ति पर बहुत ज्यादा सवाल उठाया गए थे क्योंकि यह खिलाड़ी अभी अपने कौशल को दिखा नहीं पाए थे। फर्स्ट क्लास क्रिकेट की बात करें तो इन्होंने अच्छा प्रदर्शन किया था लेकिन वहीं जब अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट की बात होती है तो कहीं ना कहीं या खिलाड़ी अपने जौहर को दिखाने में असफल रह जाते हैं जो कि इनकी काबिलियत और इनके जौहर पर एक सवाल भी है। इन दो खिलाड़ियों के चयन पर सवाल इसलिए उठे थे क्योंकि भारतीय टीम के पास इन दो खिलाड़ियों से भी ज्यादा अच्छे बल्लेबाज मौजूद थे और भारतीय टीम एक बहुत बड़ी दुविधा से जूझ रही थी जो की थी चौथे नंबर पर बल्लेबाजी की इस बल्लेबाजी की दुविधा का समाधान खोजा जाना बहुत जरूरी था।
चयनकर्ताओं के नजर में मयंक अग्रवाल और विजय शंकर ही सही विकल्प नजर आ रहे थे लेकिन फैंस के अकॉर्डिंग यह चयन सही नहीं था और कई क्रिकेट एक्सपार्ट्स के हिसाब से भी यह सोचने वाली बात थी की 28 वर्षीय विजय शंकर जिन्होंने लगभग केवल 12 मैच खेले हैं और जिनका औसत 31 के लगभग है और स्ट्राइक रेट 90 के लगभग वह चौथे नंबर पर किस प्रकार से सही बैठते हैं क्योंकि भारतीय टीम जिस बल्लेबाजी के दौर से गुजर रही है उस दौर में भारतीय टीम के पास दो बड़े जौहर हैं जिनका नाम कप्तान विराट कोहली  और उप कप्तान रोहित शर्मा और इनके साथ साथ शिखर धवन और महेंद्र सिंह धोनी जैसे बड़े बल्लेबाज और नामी बल्लेबाज जब टीम में थे तो उनके साथ एक ऐसे बल्लेबाज की आवश्यकता थी जो उनको समझ सके और उनके हिसाब से या उनके जैसा खेल सके और सबसे बड़ी बात यह भी थी कि वर्ल्ड कप जैसे बड़े टूर्नामेंट मैं आप इतनी बड़ी गलती कैसे कर सकते हैं।
चले जैसे तैसे आई बात गई बात हो गई लेकिन टीम के स्क्वाड में होना और अंतिम 11 में होना बहुत बड़ी बात है, सवाल यहां पर यह भी था कि आपने यानी कप्तान विराट कोहली ने किस सोच के साथ विजय शंकर को 6 गेम में मौका दिया है फिर भी विजय शंकर अपने खेल का प्रदर्शन सही नहीं दिखा पा रहे हैं, सवाल यह भी था कि विजय शंकर को सही स्टार्ट मिलने के बावजूद वह उस स्टार्ट को बड़े स्कोर में तब्दील नहीं कर पा रहे थे और इस पर चयनकर्ताओं, टीम कमिटी और कप्तान को सोचना चाहिए था उसके बाद बदलाव का दौर जिस तरीके से भारतीय टीम में शुरू हुआ वह रुकने का नाम नहीं लिया, मुझे याद आता है 2013 का कॉमनवेल्थ बैंक ट्राई सीरीज क्योंकि उसमें श्रीलंका भारत और ऑस्ट्रेलिया 3 टीमें 15 मैच के लिए कॉमन वेल्थ ट्रॉफी को जीतने के लिए लड़ी थी जिसमें कि ऑस्ट्रेलियाई टीम विजेता घोषित की गई थी इस टूर्नामेंट में महेंद्र सिंह धोनी ने रोटेशन पॉलिसी को अपनाया था।  रोटेशन पॉलिसी यह है कि इसके अंतर्गत किसी एक खिलाड़ी को बैठाकर के दूसरे खिलाड़ी को मौका देना, हमारे गली क्रिकेट की तरह ही था कि किसी जूनियर को बैठा दिया किसी सीनियर को  खिला लिया या इसका उल्टा।
कुछ वही हालात इस वर्ल्ड कप में भी नजर आ रहे हैं जिसमें कभी कोई खिलाड़ी बैठ रहा है या रेस्ट कर रहा है कभी किसी खिलाड़ी को कई बार मौके दिए जा रहे हैं लेकिन वह अपने आप को प्रमाणित नहीं कर पा रहा है। यह बात इसलिए उठ करके आती है जब  ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ खेलते हुए शिखर धवन ने अपनी शतकीय पारी में बढ़िया पारी खेली थी पर छोटी वाली उंगली में चोट के कारण वह वर्ल्ड कप से बाहर हो गए, उसके बाद सवाल फिर से उठने लगा कि चौथे नंबर पर बल्लेबाजी कौन करेगा क्योंकि चौथे नंबर पर बल्लेबाजी के लिए केएल राहुल जैसा एक प्रबल दावेदार मौजूद था लेकिन केएल राहुल एक ओपनर के तौर पर भी बल्लेबाजी कर सकते थे इसलिए उन्हें ऊपरी क्रम के बल्लेबाजों के साथ यानी ओपनर के तौर पर बल्लेबाजी के लिए भेजा औ गया टीम में युवा बल्लेबाज ऋषभ पंत की एंट्री हुई शिखर धवन के रूल आउट होने के बाद इस वर्ल्डकप से। ऋषभ पंत को कई मौके मिले पर टीम में जगह नहीं मिली उन्हें कभी पानी की बोतल ले ले जाते हुए देखा गया या कभी पूर्व कप्तान महेंद्र सिंह धोनी की बेटी जीवा को खिलाते हुए देखा गया, फिर दूसरा सवाल यहां पर यह भी उठता है कि जब आपके कई मैसेज में केदार जाधव के अच्छे प्रदर्शन नहीं हो रहे हैं  तो आपके पास एक सबसे बढ़िया ऑप्शन रविंद्र जडेजा नाम  का था जो कि एक प्रबल ऑलराउंडर के दावेदार के रूप में सामने आ सकते थे पर फिर वही गलती आपके पास हीरा होने के बावजूद अब सोने की तलाश कर रहे हैं रविंद्र जडेजा को सब्सीट्यूट के तौर पर पूरे 8 गेम्स फ़ील्डिंग कराई गई, है कभी कोई खिलाड़ी चोटिल हो जाता है तो उनकी जगह पर रविंद्र जडेजा को फील्डिंग के लिए बुला दिया जाता है। ना बल्लेबाजी मिलती है ना गेंदबाज़ी मिलती है और ना ही में सिलेक्शन होता है।
अब देखना यह होगा की भारतीय टीम अपने बचे हुए मैसेज में जो कि श्रीलंका के खिलाफ और सेमीफाइनल में प्लेइंग इलेवन के साथ उतरती है और यह भी देखने वाली बात होगी बिना किसी बदलाव के साथ उतरने वाली पेंट किस तरीके से अपने जौहर को दिखा सकती है इस विश्वकप 2019 में बाकी भारतीय टीम को और उनके खिलाड़ियों को बहुत-बहुत शुभकामनाएं और हम उम्मीद करेंगे कि भारतीय टीम फाइनल तक जाए और वर्ल्ड कप को फिर से भारत  लेकर आये। जय हिंद। वंदे मातरम।