नमस्कार, देश में कुछ मुद्दे दिन प्रतिदीन गंभीर होते जा रहे हैं, चाहे वो महाराष्ट्र में बनने वाली सरकार का मुद्दा हो चाहे, चाहे राम मंदिर या चाहे जो |  हालाँकि राम मंदिर का मुद्दा को जैसे तैसे निपट गया और जितनी राजनीती और ड्रामें देखने को मिले उसका कोई उत्तर नहीं है अगर राजनीति की मानी जाये तो सबसे बड़ी राजनीती दुनिया की सबसे बड़ी राजनितिक पार्टी के साथ हुई है | बेचारे सबके साथ गेम खेलते थे हरयाणा और महाराष्ट्र की जनता ने उनके साथ ही खेल खेल दिया | हरयाणा में किसी ना किसी तरह तो सर्कार बन गयी पर अपनी कुर्सी और साख बचने के लिए महाराष्ट्र में भारतीय जनता पार्टी परेशान है | परेशान हो भी क्यों न, २०१४ में विजय का डंका ज़ोरों शोरों से बजाने वली पार्टी २०१९ में अपनी इस तरह परेशान होगी किसी ने सोचा भी नहीं था | दाद देनी होगी शिवसेना की राजनीति की और खेल की कि जिस तरीके से देश को चलने वाली पार्टी को नाको चने चबवाने पर मजबूर करेगी | पर नाको चने चबवाने, ड्रामे और राजनीति का खेल तो छात्रों के साथ खेला गया है | मुद्दा यह कि विगत डेढ़ महीने से विभिन्न कॉलेज के छात्र छात्राओं के शुल्क में वृद्धि हुई है इन कॉलेजों में देश के कुछ बड़े और नामी गिरामी कॉलेज भी आते हैं |
बात यह है की वृद्धि के नाम पर आई आई टी, आई आई एम, मेडिकल कॉलेजों में सरकारी और निजी कॉलेजों में शुल्क ३०० प्रतिशत तक बाधा दिया गया है | आप जे एन यु के विरोध के बारे में आये दिन पढ़ या सुन ही रहे होंगे कोई कह रहा है कि छात्रावास शुल्क १० रुपये से ३०० रुपये हो गयी है तो कहीं से खबर आती है की २६०० से शुल्क बढ़कर २६००० हो गया है | अगर दोनों पक्षों को देखें तो सोचा जा सकता है अगर कोई परिवार है जिसकी आय तकरीबन १२००० रुपये महीने है तो वो अचानक से ३०० रुपये महीने कैसे दे सकता है जब उसकी जीवनी दुसरे प्रकार से चल रही है | अगर सही मायने में देखा जाए तो जवाहरलाल नेहरु यूनिवर्सिटी में पढ़ने और उसके छात्रावास में रहने वाले छात्रों में लगभग ४० प्रतिशत छात्र गरीबी रेखा से नीचे आते हैं यानि अपनी ज़रूरत की चीज़ें भी नहीं पा पाते हैं, तो उस सन्दर्भ में मई समझता हूँ कि १० रूपए से सीधे ३०० रुपये करना थोडा असहज होगा अगर यही फीस धीरे बढे तो ज्यादा उचित होगा | वही अगर बात की जाये २६०० से २६००० कि तो यह भी सोचे वाली बात है क्योंकि इतने बड़े फीस के मार्जिन को दे पाना एक माध्यम और गरीब परिवार के लिए बहुत ही चुनौती पूर्ण होगा |
बहरहाल, ये बात तो थी जे. एन. यु. जहाँ मुद्दे नज़र आते हैं पर वहां की बात को करता है जहाँ फीस ५०,००० से सीधे २ लाख कर दी गई है | देहरादून के परेड ग्राउंड में मेडिकल कॉलेज के बच्चे लगभग ५० दिन से धरने पर हैं और उनकी कोई सुनने को तैयार नहीं है | उत्तराखंड में अभी कुछ वक़्त पूर्व दो बड़े कार्यक्रम करवाए गये और उसी परेड ग्राउंड के पास जो की कुछ इस प्रकार से हैं
1.   सिंगल यूज प्लास्टिक के विरुद्ध मानव श्रृंखला- ५ नवम्बर
2.   उत्तराखंड स्थापना दिवस – ९ नवम्बर
इन दोनों ही कार्यक्रम में उत्तराखंड के मुख्मंत्री श्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत थे और उत्तराखंड स्थापना दिवस में देश के रक्षा मंत्री श्री राजनाथ सिंह जी भी थे पर शायद किसी ने इस बात ध्यान देने कोशिश नहीं की |
हालांकि कुछ समय पूर्व २ जजों की बेंच ने आदेश दिया है कि अतिरिक्त कॉलेज फीस वापस की जाये पर यह बात कहे जमाना बीत गया है और फीस नहीं मिली है | समझ नहीं आता धर्म के नाम पर आने वाले फैसले के लिए लोग बेसब्री से इंतज़ार करते हैं पर देश के भविष्य के साथ खिलवाड़ हो तो कोई देखने नहीं आता |
हम जे एन यु को बोल रहे हैं कुछ लोग सम्वेदनाएँ जाता रहे हैं, कुछ लोग जे एन यु का विरोध कर रहे हैं क्योंकि वो जे एन यु है | वो जे एन यु है इसलिए दिख गया, नज़र में आ गया है पर जो नहीं आया वो आ भी नहीं सकता है क्योंकि लाने के प्रयास ही नहीं किया जाता| धन्यवाद् ||